भारतीय नौसेना में शामिल होगी पारंपरिक रूप से निर्मित 'प्राचीन सिलाई जहाज' करवार नौसेना अड्डे पर 21 मई को होगा औपचारिक नामकरण और समर्पण समारोह(Traditionally built 'ancient sewing ship' to be inducted into Indian Navy; formal naming and dedication ceremony to be held on May 21 at Karwar Naval Base)
5/19/2025
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दिल्ली, 20 मई 2025 -भारतीय नौसेना 21 मई 2025 को कर्नाटक के करवार स्थित नौसेना अड्डे पर एक भव्य समारोह के दौरान पारंपरिक तकनीकों से निर्मित 'प्राचीन सिलाई जहाज' (Ancient Stitched Ship) को अपने बेड़े में औपचारिक रूप से शामिल करेगी। इस समारोह के मुख्य अतिथि माननीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत होंगे।
यह विशेष जहाज 5वीं सदी ईस्वी के एक प्राचीन जहाज की प्रतिकृति है, जिसकी प्रेरणा प्रसिद्ध अजंता गुफाओं की एक चित्रकला से ली गई है। इसका निर्माण पारंपरिक शिपबिल्डिंग तकनीकों से किया गया है, जिनमें आधुनिक उपकरणों या सामग्रियों का प्रयोग नहीं किया गया। हजारों हाथ से सिले हुए जोड़ इस अनूठे जहाज की विशेषता हैं।
इस परियोजना की शुरुआत जुलाई 2023 में संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और 'होड़ी इनोवेशन्स' के बीच त्रिपक्षीय समझौते के तहत हुई थी। निर्माण कार्य केरल के पारंपरिक कारीगरों द्वारा किया गया, जिसका नेतृत्व प्रसिद्ध मास्टर शिपराइट श्री बाबू शंकरण ने किया। 'सिलाई जहाज' का कील-कैसिंग 12 सितंबर 2023 को हुआ था और इसका जलावतरण फरवरी 2025 में गोवा स्थित होड़ी शिपयार्ड में किया गया।
यह जहाज अपने आप में अद्वितीय है – इसमें वर्गाकार पाल (square sails), लकड़ी की पतवार, पारंपरिक चालन प्रणाली, और कोई आधुनिक धातु नहीं है। इसकी रूपरेखा केवल एक द्वि-आयामी कलाकृति के आधार पर तैयार की गई, जिससे यह परियोजना तकनीकी रूप से अत्यंत जटिल हो गई। जहाज के जलगतिकी व्यवहार की पुष्टि के लिए नौसेना ने IIT मद्रास के समुद्री अभियांत्रिकी विभाग के साथ सहयोग किया और खुद ही लकड़ी के मस्तूल की संरचनात्मक मजबूती का विश्लेषण भी किया।
इस परियोजना का उद्देश्य न केवल भारत की प्राचीन नौसैनिक विरासत को पुनर्जीवित करना है, बल्कि उसे आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक बनाना भी है। जहाज के शामिल होने के बाद इसका अगला चरण इसकी समुद्री यात्रा होगी, जिसमें यह जहाज भारत के पारंपरिक समुद्री व्यापार मार्गों पर यात्रा करेगा। इसकी पहली महासागरीय यात्रा गुजरात से ओमान तक प्रस्तावित है।
भारतीय नौसेना द्वारा इस ऐतिहासिक प्रयास के सफल क्रियान्वयन से यह प्रमाणित होता है कि भारत की प्राचीन नौवहन परंपराएं आज भी जीवंत हैं और उन्हें आधुनिक विज्ञान व तकनीक के साथ जोड़कर पुनः जीवंत किया जा सकता है।
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