कर्ण के अंतिम क्षणों में श्रीकृष्ण ने ली उनकी दानवीरता की परीक्षा (In Karna's last moments, Lord Krishna tested his generosity)
12/28/2024
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महाभारत के युद्ध में कर्ण एक ऐसे अद्वितीय योद्धा थे, जिनकी वीरता, दानशीलता और सिद्धांतों के सामने स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी नतमस्तक थे। हालांकि वह क्षत्रिय कुल में जन्मे थे—पिता सूर्यदेव और माता कुंती के पुत्र थे—लेकिन जीवनभर सूतपुत्र के रूप में अपमान सहते रहे। बावजूद इसके, कर्ण ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनकी दानवीरता का ऐसा उदाहरण है कि आज भी कोई भी बड़ा दानवीर कर्ण का नाम लिए बिना अधूरा है।
युद्ध के अंतिम क्षणों में, जब कर्ण घायल होकर धरती पर गिर पड़े थे, तब श्रीकृष्ण ने उनकी महादानी होने की परीक्षा ली। यह परीक्षा न केवल कर्ण की महानता को साबित करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि क्यों श्रीकृष्ण उन्हें "दानवीर कर्ण" कहते थे।
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अर्जुन का अहंकार और श्रीकृष्ण की परीक्षा
महाभारत के युद्ध के दौरान, जब कर्ण धरती पर कराह रहे थे, पांडव उनकी मृत्यु का जश्न मना रहे थे। अर्जुन, अपनी जीत के नशे में, अहंकार से भरकर श्रीकृष्ण से बोले, "आपका महादानी कर्ण अब समाप्त हो चुका है।"
श्रीकृष्ण ने अर्जुन की बात सुनकर कहा, "कर्ण केवल दानी नहीं, बल्कि महादानी है। उसके जैसा दानी पूरे युग में कोई नहीं हुआ।"
अर्जुन ने इस पर संदेह जताया और पूछा, "अब यह कैसे साबित हो सकता है?"
श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, "कर्ण अभी भी जीवित है, और वह अपनी दानवीरता को साबित कर सकता है।"
इसके बाद, श्रीकृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण का रूप धारण करके कर्ण की परीक्षा लेने युद्धभूमि पर पहुंचे।
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दानवीरता की अनोखी परीक्षा
जब वे कर्ण के पास पहुंचे, तो श्रीकृष्ण (ब्राह्मण के रूप में) बोले, "हे अंगराज! आपकी यह अवस्था देखकर मुझसे कुछ मांगने का साहस नहीं हो रहा। मुझे यहां से जाना ही उचित होगा।"
कर्ण, जो मृत्यु शैया पर थे, उन्होंने ब्राह्मण को रोकते हुए कहा, "हे ब्राह्मण! जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, तब तक मेरे पास आए याचक को खाली हाथ लौटाना असंभव है। आप जो चाहें मांग सकते हैं।"
ब्राह्मण ने तब कर्ण से सोने का दान मांगा। कर्ण ने महसूस किया कि उनके पास अब देने को कुछ भी नहीं बचा है। उन्होंने तुरंत अपने समीप पड़े एक पत्थर से अपने दो सोने के दांत तोड़े और ब्राह्मण को सौंप दिए।
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कर्ण के तीन वरदान
कर्ण की इस दानशीलता को देखकर श्रीकृष्ण बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कर्ण को उनके बलिदान और उदारता के लिए वरदान मांगने का प्रस्ताव दिया।
1. पहला वरदान: कर्ण ने श्रीकृष्ण से कहा, "हे माधव! मैं अपने जीवन में एक सूतपुत्र होने के कारण बहुत अन्याय और अपमान झेल चुका हूं। कृपया अगले अवतार में आप पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए प्रयास करें।"
2. दूसरा वरदान: कर्ण ने कहा, "अगले अवतार में आप मेरे ही राज्य में जन्म लें, ताकि मेरा राज्य धन्य हो सके।"
3. तीसरा वरदान: कर्ण ने कहा, "मेरा अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर करें, जहां कोई पाप न हुआ हो।"
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श्रीकृष्ण ने कैसे पूरा किया कर्ण का अंतिम वरदान?
कर्ण के अंतिम वरदान को सुनकर श्रीकृष्ण स्तब्ध रह गए। उन्होंने कहा, "पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां कभी पाप न हुआ हो।"
इसलिए, कर्ण के अंतिम संस्कार के लिए श्रीकृष्ण ने अपने ही हाथों को पवित्र स्थान माना और उनका अंतिम संस्कार अपने हाथों पर किया।
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दानवीर कर्ण की महानता
कर्ण की दानवीरता और सिद्धांतों के कारण वे महाभारत के सबसे सम्माननीय पात्रों में से एक बन गए। कर्ण के जीवन ने यह सिखाया कि व्यक्ति का मूल्य उसकी जाति, कुल या स्थिति से नहीं, बल्कि उसके गुणों और कर्मों से होता है। यही कारण है कि श्रीकृष्ण भी कर्ण को नमन करते थे।
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