दिल्ली।दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की टीम ने 100 करोड़ से अधिक की ठगी करने वाले एक ऐसे खनन माफिया को दबोचा है जो अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए पिछले सात साल से बार बार अपने ठिकाने बदलकर व जिम्बाब्वे देश के सिम कार्ड इस्तेमाल कर पुलिस को चकमा दे रहा था। आरोपी इतना शातिर था की इसके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी हो जाने पर जांच एजेंसियों से बचने के लिए एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए ट्रैन, हवाई जाहज या पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने की वजाये सड़क मार्ग से ही देश के अलग अलग राज्यों में अपनी पजेरो कार में घूम रहा था। साथ ही जिम्बाब्वे देश के मोबाइल नंबरों से ही अपने खास लोगों को वाट्सऐप और टेलीग्राम एप से काल करता था। फरार रहने के दौरान आरोपी कहीं भी 24 घंटे से अधिक समय नहीं रुकता था। लेकिन जो पकड़े जाने पर खुद हैरान था की दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने उसे खोजा कैसे। ठग की पहचान वसंत विहार निवासी 70 वर्षीय प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता के रूप में हुई है। आरोपी दिल्ली से सुल्तानपुर गांव में स्थित एक मॉल का मालिक भी हैं।
संयुक्त आयुक्त छाया शर्मा ने बताया की आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता के खिलाफ शकुंतला नाम की महिला की शिकायत पर दिनांक दो सितम्बर 2017 को आर्थिक अपराध शाखा में एफआईआर संख्या 144/2017 धारा 420/406/120 बी के तहत मामला दर्ज किया गया था।
पीड़िता ने बताया की आरोपी प्रदीप पालीवाल ने उसे राजस्थान में ग्रेनाइट खनन के अपने व्यवसाय में 20 करोड़ निवेश करने के लिए प्रेरित किया था। आरोपी ने आश्वासन दिया था कि इसके बदले वह उन्हें प्रति माह 50 लाख रुपये का भुगतान करेगा। विश्वास में आकर महिला ने दिनांक 28 फरवरी से 23 सितम्बर 2014 के बीच 13 करोड़ 45 लाख चेक व आरटीजीएस के माध्यम से और तीन करोड़ 15 लाख रूपये नगद देकर कुल 20 करोड़ रुपये निवेश कर दिए।
लेकिन आरोपित द्वारा पैसे नहीं लौटाने पर आरोपी के खिलाफ 2017 में आर्थिक अपराध शाखा में मुकदमा दर्ज करा दिया था। मुकदमा दर्ज होते ही आरोपित फरार हो गया और अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब में ठिकाने बदल बदलकर छिपता फिर रहा था।
आरोपी को दबोचने के लिए संयुक्त आयुक्त छाया शर्मा ने जितेंद्र मीणा डीसीपी ईओडब्ल्यू की सुपरविजन व कपिल पाराशर एसीपी के नेतृत्व में इंस्पेक्टर दिनेश दहिया, एसआई अनुराग, एएसआई पप्पू सिंह, विनोद कुमार, हेड कांस्टेबल लोकेश, डॉली, अमित कुमार व कांस्टेबल तेजपाल की चार टीमों का गठन किया।
आरोपी इतना शातिर था की ठगी करने के बाद सबसे पहले अपने सभी मोबाईल नंबर बंद करके अंडर ग्राऊंड हो गया था। साथ ही सोशल मिडिया से भी दूरी बना ली थी और हर थोड़े समय के बाद अपना ठिकाना बदलने लगा।
इंस्पेक्टर दिनेश दहिया की टीम आरोपी को दबोचने का हर संभव प्रयास कर रही थी लेकिन कोई सुराग नहीं मिल रहा था।
एसआई अनुराग ने आरोपी की पूरी फैमली के साथ उसके दूर के रिश्तेदारों, दोस्तों आदि के मोबाइल पर आने और जाने वाली लगभग चार हजार फोन काॅल नंबरो को खंगाला ताके कब कहां से किसी के पास आरोपी का फोन आ जाये और कोई क्लू मिल जाये। लेकिन सारी मेहनत बेकार।
टीम ने आरोपी की पत्नी के नंबर को भी रडार पर रखा हुआ था। लेकिन उसकी पत्नी के नंबर से यह पता चलता था कि यह कुछ लोगों से तो बात करती है लेकिन जितने भी लोग थे सब रिश्तेदार थे। आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता शायद किसी नंबर पर बात नहीं कर रहा था। टीम अंधेरे में थी। धीरे धीरे काफी समय निकल गया। लेकिन टीम लगी हुई थी कि किसी भी हाल में आरोपी को दबोचना था।
टीम के सामने अब ले देकर एक ही करैक्टर बचा था जिसके साथ आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश क्लोज भी था वो थी उसकी एक महिला मित्र। तो टीम की अब पूरी उम्मीेदें उसकी महिला मित्र पर टिकी हुई थी।
जितेंद्र मीणा डीसीपी ईओडब्ल्यू को पूरा भरोसा था कि आरोपी अपनी महिला मित्र से जरूर संपर्क करेगा। अब सारी उम्मीदें उसकी महिला मित्र पर टिक गई थी।
टीम ने आरोपी की महिला मित्र के सभी नंबर ट्रैस करके अपने पास रखे और हर नंबर की बातचीत को चुपचाप सुनते भी थे। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
लेकिन एक रोज आरोपी की महिला मित्र के मोबाईल पर इंटरनेशनल नंबर से एक वाट्सऐप काॅल आती है। चेक करने पर टीम को पता चला की इंटरनेशनल नंबर जिम्बाब्वे देश का है। लेकिन आईपी एड्रैस से पता चला वाट्सऐप काॅल दिल्ली के शाहदरा इलाके से आई थी। टीम आरोपी की महिला मित्र के मोबाईल पर आने वाले हर नंबर को क्रास चैक करती थी। लेकिन यह नंबर नया था।
टीम ने इंटरनेशनल मोबाइल नंबर की नार्मल काॅल हिस्ट्री खंगाली तो कुछ नहीं मिला लेकिन वाट्सऐप काॅल हिस्ट्री खंगालने पर टीम के सामने बड़ी चैकाने वाली बात सामने आई।
दरअसल आरोपी की महिला मित्र अपने फोन को फ्लाईट मोड पर लगाकर वाईफाई से वाट्सऐप काॅल किया करती थी। लेकिन उस दिन शायद फोन को फ्लाईट मोड पर करना भूल गई थी जिससे नंबर पकड़ में आ गया।
अब आर्थिक अपराध शाखा की टीम हैरान की आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश की महिला मित्र को फोन फ्लाईट मोड करके वाईफाई से इंटरनेशनल नंबर काॅल करने क्या जरूरत है।
संयुक्त आयुक्त छाया शर्मा को समझते देर नहीं लगी की हो न हो फोन को फ्लाईट मोड पर लगाकर इंटरनेशनल नंबर पर वाईफाई से काॅल करने के पीछे कोई न कोई राज जरूर है।
सारी निगरानी व छानबीन करने के बाद टीम को लगा क्यों न इस नंबर को टटोला जाए।
टीम ने मोबाईल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से संपर्क कर सस्पेक्ट नंबर की डिटेल मंगवाई। लेकिन सस्पेक्ट नंबर प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश के नाम पर नहीं थे।
फिर भी टीम ने सस्पेक्ट नंबर को जीरो पोइन्ट करके सर्विलांस पर लगा दिया। संस्पेक्ट मोबाईल नंबर की लोकेशन दिल्ली के क्रॉस रिवर मॉल के आसपास की आ रही थी।
टीम ने आरोपी की महिला मित्र से सख्ती से पूछताछ की तो वो टूट गई और संयुक्त आयुक्त छाया शर्मा का शक सही निकला। पूछताछ में पता चला की जिम्बाब्वे देश की इंटरनेशल सिम से आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता ही उसके पास व्हाट्सअप या टेलीग्रामएप से कॉल करता था। साथ में टीम को यह भी पता चला की आरोपी अपने दोस्त की राजस्थान नंबर आरजे14 यू ई 0899 की सफेद पजेरो गाड़ी से ही एक शहर से दूसरे शहर छिपता फिर रहा है।
कॉल करने के तुरंत बाद आरोपी ने अपना मोबाइल ऑफ कर लिया था। जिससे आरोपी की पिनपॉइंट लोकेशन का पता नहीं लग पा रहा था।
शाहदरा जैसे घनी आबादी भरे इलाके से एक पजेरो कार खोजना अपने आप में बहुत बड़ा चैलेंज था लेकिन इंस्पेक्टर दिनेश दहिया की टीम पिछे नहीं हटी और शाहदरा इलाके में मुखबिरों को एक्टीव कर दिया।
लेकिन मुखबिरों को एक्टीव करने के बाद भी टीम के हाथ कुछ न लगा। अब आरोपी को दबोचने के लिए इंस्पेक्टर दिनेश दहिया ने दूसरा रास्ता अपनाया। टीम अब खबरियों की दी गई जानकारी पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी।
बदमाशों को दबोचने के लिए एसआई अनुराग ने शाहदरा इलाके में हर घर, दुकान, आफिस, पार्किंग व धार्मिक स्थलों पर खड़ी हर एक पजेरो कार को जांचने की रणनीति बनाई।
इंस्पेक्टर दिनेश दहिया यह अच्छी तरह जानते थे कि किसी भी डिस्ट्रिक की पुलिस के डिवीजन और सब डिवीजन होते हैं। जिन्हे आगे बीट में बाटा जाता है। एक कांस्टेबल को एक बीट मिलती है। और कांस्टेबल जिम्मेवारी होती है की वो अपने इलाके के हर इंसान की पूरी जानकारी रखे।
जितेंद्र मीणा डीसीपी ईओडब्ल्यू ने शाहदरा इलाके के चप्पे चप्पे को छानने के लिए बीट कांस्टेबलो की मदद ली। टीम ने बड़े स्तर पर शाहदरा इलाके में राजस्थान नंबर आरजे14 यू ई 0899 की सफेद पजेरो गाड़ी कार को खोजने का सर्च अभियान चलाया।
टीम की मेहनत रंग लाई। सस्पेक्ट पजेरो गाड़ी क्रॉस रिवर मॉल के आसपास स्पाॅट हो गई। सफेद पजेरो कार से आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता को दबोच लिया गया। कार में इसके साथ उसका सहयोगी विनायक भट्ट भी था। विनायक भट्ट को भी पिछले काफी समय से सीबीआई की टीम धोखाधड़ी के एक मामले में खोज रही थी।
आर्थिक अपराध शाखा की टीम ने विनायक भट्ट को सीबीआई को सौंप दिया।
आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता ने बताया कि उसे लगता था कि वो कभी पुलिस के हत्थे नहीं लगेगा इसलिए पुलिस को चकमा देने के लिए उसने अपने नाम पर लिए सभी पुराने नंबर बंद कर दिये थे और सोशल मिडिया से भी दूरी बना ली थी। साथ ही उसे यह भी लगता था कि अगर मोबाईल को फ्लाईट मोड़ पर आॅफ करके वाईफाई से वाट्सऐप काॅल की जाए तो किसी को पता नहीं चलेगा लेकिन पकड़े जाने जाने पर खुद हैरान था गिरफ्तारी के समय आरोपी ने टीम से पूछ ‘बस इतना बता दो-मुझे खोजा कैसे ?’
70 वर्षीय आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता पुत्र रमेश चंद पालीवाल मकान नंबर बी 9/13, वसंत विहार, नई दिल्ली का रहने वाला है।
आरोपी प्रदीप पालीवाल ने 11वीं तक सेंट अंसलान स्कूल, अजमेर से पढ़ाई की है। इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और अजमेर में अपने पिता के स्टील और लोहे के कारोबार में शामिल हो गया। वह 11 कंपनियों में डायरेक्टर है, एक तरह से कहीं तो वह 11 कंपनियों का मालिक है। ये सभी कंपनियां रियल एस्टेट बिजनेस व ग्रेनाइट और मार्बल की माइनिंग से जुड़ी हुई है.
पिछले 20 वर्षों से वह अजमेर, राजस्थान में ग्रेनाइट खनन और रियल एस्टेट का व्यवसाय कर रहा है। कई तरह के व्यवसाय के बाद उसने कंस्ट्रक्शन का बिजनेस भी शुरू किया था। 2007 में उसने राजस्थान में होलीस्टार इंफ्रा लिमिटेड के नाम से ग्रेनाइट खनन का व्यवसाय भी शुरू किया। उसका अपने परिवार से अच्छे संबंध नहीं है। पिछले आठ साल से वह पत्नी और बेटियों के साथ नहीं रह रहा है। फरार रहने के दौरान उसके दोस्त विनायक भट्ट ने उसकी सहायता की।
आरोपी प्रदीप पालीवाल उर्फ महेश गुप्ता ने वर्ष 2006 में जाली कागजात की मदद से अपने नाम पर एक एचएसआईडीसी प्लॉट पंजीकृत कराया। उक्त मामले में उसके खिलाफ उद्योग विहार, गुरुग्राम में प्राथमिकी दर्ज की गई। 2015 में उसने एचडीएफसी बैंक के पास पहले ही गिरवी रखी संपत्ति पर 12 करोड़ का लोन लिय। करोलबाग थाने में उक्त मामले में मामला दर्ज है। उक्त मामले को बाद में जांच के लिए ईओडब्ल्यू में ट्रांसफर कर दिया गया था। 2017 में उसने ग्रेनाइट खनन में निवेश के बहाने शकुंतला देवी से 20 करोड़ ठग लिया।
पुलिस के अनुसार प्रदीप पालीवाल गिरफ्तारी से बचने के लिए लगातार भाग रहा था। उसके खिलाफ लुक आउट नोटिस निकला हुआ था ताकि अगर यह विदेश भागने की कोशिश करता है तो उसे एयरपोर्ट से ही दबोचा जा सके। लेकिन प्रदीप पालीवाल इतना शातिर निकला कि उसने न तो ट्रेन का इस्तेमाल किया और न ही रेल का। वह पजेरो कार में सवार होकर देश में एक जगह से दूसरी जगह के चक्कर काट रहा था. इतना ही नहीं इसने अपने कर्मचारी को जिम्बाब्वे भेज कर वहां से 7 से 8 सिम कार्ड एक्टिव करवा कर मंगवाए थे और टेलीग्राम व व्हाट्सएप के माध्यम से अपने परिचितों से संपर्क करता था। एक सिम को 3 से 4 दिन बाद इस्तेमाल किया करता था।
प्रदीप पालीवाल अपनी पजेरो कार से ही देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में घूम रहा था। गिरफ्तारी से बचने के लिए वह एक जगह पर 12 से 24 घंटे ही रुकता था और वह एक राज्य से दूसरे राज्य में तुरंत ही शिफ्ट हो जाता था।